सबके मुँह में चाँदी का जूता ठुँसा हुआ था और हाथ चम्पूगिरी में लगे हुए थे।
3.
उसके मुँह में सुअरिया का मोटा थन ठुँसा हुआ था और उसके हल्के-हल्के तिरतिराते हुए होंठों के दोनों कोनों से बहकर दूध की पतली धारा उसके गालों पर फैल रही थी।
4.
तो देखा महाबीर जी को, लिपे पुते एक टाँग पर खड़े, मुँह में आटे की लोई सरीखा कुछ ठुँसा हुआ, और शायद उसी वज़ह से उनकी आँखें बाहर को उबली पड़ रही थीं, एवं वह दीवार से चिपक से गये थे ।